गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के रूप में भी जाना जाता है, जिसे गणेश उत्सव के रूप में पूरे भारतवर्ष में बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है, यह एक हिंदू उत्सव है जो भगवान गणेश के जन्मदिन का प्रतीक है। भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि, धन और भाग्य का देवता माना जाता है। गणेश चतुर्थी भारत और विशेष रूप से महाराष्ट्र के साथ-साथ मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, गोवा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु जैसे अन्य राज्यों में सबसे लोकप्रिय उत्सवों में से एक है। भगवान गणेश को सभी प्रकार की बाधाओं को दूर करने वाले के रूप में जाना जाता है, उन्हें सभी हिंदू देवी-देवताओं में सबसे पहले माना जाता है।
ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार गणेश चतुर्थी उत्सव अगस्त या सितंबर के महीने में आती है।
गणेश चतुर्थी किस तारीख को मनाई जाएगी?
गणेश चतुर्थी 10 दिवसीय उत्सव हैं जो की 6 सितंबर 2024 से शुरू होगा और 17 सितंबर 2024 तक चलेगा। लोक प्रिय द्रिक पंचांग के अनुसार, चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश का स्वागत करने का सबसे शुभ समय 6 सितंबर को दोपहर 03:01 बजे शुरू होगा और 7 सितंबर को शाम 05:37 बजे समाप्त होगा।
पूजा का सबसे शुभ समय 7 सितंबर, 2024 को सुबह 11:03 बजे से दोपहर 01:34 बजे तक रहेगा।
गणेश चतुर्थी 2024: अनुष्ठान और उत्सव
भगवान गणेश को मान्यता के अनुसार विघ्नहर्ता (किसी भी बाधा को दूर करने वाले देवता) के रूप में भी संदर्भित किया जाता है। भगवान गणेश हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवता हैं, हिन्दू धर्म में लगभग सभी समारोह उनकी पूजा से शुरू होता हैं। गणेश चतुर्थी के चार मुख्य अनुष्ठान हैं – प्राणप्रतिष्ठा, षोडशोपचार, उत्तरपूजा और विसर्जन पूजा।
घरों को रंगोली और फूलों से सजाया जाता है और फिर मिट्टी के भगवान गणेश को घरों में लाया जाता है। चतुर्थी के दिन घरों, पूजा पंडालों, कार्यालयों और स्कूलों में भव्य रूप से सजी गणेश प्रतिमाएँ स्थापित किया जाता हैं।
पुजारियों द्वारा मंत्र पढे जाते हैं, और भगवान गणेश की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा की जाती है। फिर, 16 अलग-अलग अनुष्ठानों का पालन किया जाता है – जिसे षोडशोपचार पूजा की परंपरा के नाम से भी जाना जाता है। मोदक एक मिसथान हैं जिसे भगवान गणेश बहुत पसंद करते हैं, इसीलिए मोदक को प्रसाद के रूप में भगवान गणेश को अर्पित किया जाता हैं तथा बाद में प्रसाद के रूप में उनही मोदकों को भक्तो को खाने के लिए दिया जाता हैं। पूजा के समय भगवान गणेश जी को मोदक के साथ-साथ अन्य फल और मिठाइयाँ भी चढ़ाई जाती हैं।
लोग धार्मिक गीत बजाकर और गाकर, ढोल की थाप पर नाचकर और स्वादिष्ट भोजन बनाकर गणेश चतुर्थी मनाते हैं। गणेश चतुर्थी के उत्सव के दौरान तीसरी प्रमुख परंपरा उत्तरपूजा है जो भगवान गणेश को अलविदा कहने पर केंद्रित है।
गणेश चतुर्थी के 10वें और अंतिम दिन भगवान गणेश जी की मूर्ति को पूरी श्रद्धा के साथ पास ही किसी नदी में विसर्जित किया जाता है। इस अनुष्ठान को गणेश विसर्जन के रूप में जाना जाता है। लोग “गणपति बप्पा मोरया, पुरच्या वर्षी लौकरिया” का जाप करते हैं जिसका अर्थ है “अलविदा भगवान गणेश, कृपया अगले साल फिर से आएं।”
भगवान गणेश को हाथी का सिर क्यो लगाया गया था?
भगवान गणेश सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवता हैं और हर कोई गणेश को प्रसन्न करना चाहता है। ऐसा माना जाता है कि जिस समय भगवान गणेश का सिर कट गया था, उस समय भगवान शंकर चाहते तो कोई भी सिर गणेश जी को लगा सकते थे, लेकिन उन्होंने हाथी का सिर ही गणेश जी के धड़ में स्थापित किया। इसके पीछे क्या प्रेरणा थी? आइए इस पर नज़र डालते हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने अपने शरीर से हल्दी को हटाकर, उस हल्दी से एक बच्चे की मूरत बनाई थी, उसी मूरत से दिव्य रूपी बालक प्रकट हुआ, ये बालक कोई और नहीं बल्कि भगवान गणेश जी थे। माता पार्वती ने बच्चे का नाम विनायक रखा। इसके बाद, जब माता पार्वती स्नान के लिए जाने लगीं, तो उन्होंने विनायक को घर के सामने खड़े रहने और किसी को भी घर में न आने देने की आज्ञा दी।
भगवान गणेश अपनी मां के निर्देशों का पालन करते हुए किसी को भी घर में प्रवेश नहीं करने दे रहे थे। माता पार्वती के निर्देश पर गणेश जी ने भगवान शिव को भी घर के बाहर रोक दिया, जिससे भगवान शिव क्रोधित हो गए। भोलेनाथ को नहीं पता था कि गणेश कौन हैं और उन्होंने अपने त्रिशूल से उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। ऐसा करते ही माता पार्वती रोने लगती हैं और बहुत क्रोधित हो जाती हैं, वो समस्त सृष्टि को समाप्त करने का मन बना लेती हैं, लेकिन जल्दी ही भगवान शंकर अपने अनुयायियों को उत्तर दिशा में जाने का आदेश देते हैं और कहते हैं की जो भी पहला जीव उन्हे दिखे तुरंत उसका सिर लेकर आओ। आज्ञा पाकर भगवान शिव के गण उत्तर दिशा में जाते हैं लेकिन उन्हे रास्ते में एक हाथी मिलता हैं, एक बार तो गण संकोच करते हैं, फिर भगवान की आज्ञा का पालन करते हुये वो हाथी के मस्तक को लेकर भगवान शिव के समक्ष आते हैं। इसके बाद भगवान शिव उस हाथी के मस्तक को गणेश जी से जोड़ देते हैं, इसके बाद अपनी शक्ति से गणेश जी में प्राण वायु को उत्पन्न कर के भगवान गणेश को जीवित कर देते हैं।
गणेश जी की मूर्ति कहां लगानी चाहिए?
भगवान गणेश को मंगलमुखी भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि गणेश जी समृद्धि, खुशी, सफलता और सौभाग्य प्रदान करने वाले देवता हैं। लेकिन ध्यान रहे गणेश जी के साथ दरिद्रता और दुख भी निवश करते हैं, ये दोनों भगवान गणेश के पीठ में निवश करते हैं। इसलिए जब आप गणेश जी की स्थापना करें तो इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि गणेश जी की पीठ घर की तरफ नहीं होनी चाहिए, मूर्ति को ऐसे स्थापित करे की भगवान गणेश घर की तरफ देखते हुए प्रतीत होना चाहिए।
पूर्व दिशा और उत्तर-पूर्व कोना गणेश जी की स्थापना के लिए सबसे अच्छा माना जाता है, हालांकि आपको भूल से भी गणेश जी को दक्षिण कोने या दक्षिण-पश्चिम कोने यानी दक्षिण-पश्चिम में नहीं रखना चाहिए। इससे नुकसान हो सकता है। इसके सात-साथ अपने ऑफिस या घर में एक ही स्थान पर गणेश जी की दो मूर्तियां न रखें। वास्तु शास्त्र के अनुसार ऐसा करने से ऊर्जा का असंतुलन पैदा होता है, जिसके परिणामस्वरूप नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।