पोट्टी श्रीरामुलु का जन्म 16 मार्च 1901 को एक आम परिवार मे हुआ था, उन्होने आम बच्चो की तरह ही पढ़ाई करने के बाद रेलवे मे नौकरी की थी। लेकिन जल्दी ही वो महात्मा गांधी जी के विचारो से प्रभावित हो गए और और पोट्टी श्रीरामुलु ने रेलवे की नौकरी को चार साल में ही छोड़ दिया। नौकरी छोड़ने के बाद पोट्टी श्रीरामुलु साबरमती आश्रम आ कर महात्मा गांधी जी के दिशा निर्देश मे देश की आजादी के कार्य मे जुट गए। पोट्टी श्रीरामुलु ने 1930 के नमक सत्याग्रह मे बढ़चढ़ कर भाग लिया था और उन्हे नमक सत्यागृह के साथ साथ 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के लिए भी जेल जाना पड़ा था।
आजादी के समय आंध्रप्रदेश और तमिलनाडू एक ही राज्य था, जिसे मद्रास के नाम से जाना जाता था। पोट्टी श्रीरामुलु ने भाषा के आधार पर राज्य की मांग की और उन्होने आंध्राप्रदेश के लिए आमरण अनशन किया था। हालांकि सरकार उनके इस अनशन को लेकर लापरवाह रही जिसकी वजह से पोट्टी श्रीरामुलु का देहांत हो गया। उनके इस आमरण अनशन मे उनकी मृत्यु हो जाने के बाद सरकार की नींद खुली और भाषा के आधार पर देश के पहले राज्य आंध्राप्रदेश की नीव रखी गई।
पोट्टी श्रीरामुलु ने आंध्रा प्रदेश राज्य की मांग के लिए 58 दिनो तक आमरण अनशन किया था। उसी स्थान पर उन्होने दम तोड़ दिया था। 15 दिसंबर 1952 को श्री रामूलु की मौत के बाद भारत सरकार ने मद्रास राज्य से आंध्रा प्रदेश को अलग करने की घोषणा कर दी।
इसके अलावा श्रीरामूलु जी ने आंध्र के गांधी मेमोरियल फंड के निदेशक के रूप मे भी कार्य किया था। उन्हे आंध्रा राज्य का जनक भी कहा जाता हैं। महात्मा गांधी ने पोट्टी श्रीरामुलु की कार्यशैली को देख कर कहा था, की अगर श्रीरामूलु की तरह 11 और लोग मिल जाते तो भारत बहुत पहले ही अंग्रेज़ो से आजादी पा चुका होता।
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